पिकनिक
राम -श्याम एक बार पिकनिक गये, आबादी से बहुत दूर जाकर घने जंगल में अपना डेरा जमाया, वहीं पर झोपड़ी बना कर रहते ओर जंगली कंद फल आदि खाने लगे, एक दिन राम श्याम को एक लड़की मिली वो भी जंगल मे पिकनिक करने आई थी ,अब तीनों साथ मे रहते साथ मे ही खाते ओर पिकनिक करते! धीरे -2 राम ओर लड़की मे नजदीकीयाँ बढ़ने लगी ( अक्सर ऐसा होता हैं ? स्त्री पुरुष अकेले मे नजदीक आ ही जाते हैं ) पर श्याम को बर्दाश्त नहीं हुआ ऐसा भी होता ही है ? लोग तो प्रसाद लेते समय भी ख्याल रखते हैं कि पंडित ने पड़ोसी को ज्यादा दिया मुझको कम!! यहाँ तो सवाल स्त्री का था?? ओर हिन्दू धर्म मे तो स्त्री आधार हैं महाभारत का?? रामायण का?? देवता भी मौके मे रहते है की कब ॠषि जाए स्नान करने? ओर कब हम वेष बदल कर पहुँच जाये ॠषि की स्त्री के पास??? श्याम भी धार्मिक व्यक्ति था! बर्दाश्त नही हुआ तो छोड़कर वापस लौट गया। कुछ समय बाद राम ने स्त्री से विवाह करने का निर्णय लिया! एक पंडित भी आया था पिकनिक पर वो तो इंतजार मे ही था कि कब उसको कोई मिले ओर ऊसका व्यापार शुरू हो? विवाह संपन्न हुआ। अब झोपड़ी की जगह पक्का मकान भी बना लिया आमदनी भी होने लगीं पिकनिक पर आये लोगों को चाय नाश्ता खिलाकर! धीरे धीरे बच्चे हुए ऊनकी शादी हुई तब तक तो ऊनके घर के आस पास हजारों घर बन गए थे पर्यटन स्थल की जगह पूरा शहर बस गया था!! राम भी उम्र के आखिरी पड़ाव पर था शरीर जबाव दे चुका था ,खाट से भी बगैर सहारा लिए ऊठा नही जाता था!! पत्नी के गुजर जाने के बाद बेटा बहू ने नौकरो के लिये बनाई गयी झोपड़ी में राम का स्थाई निवास बना दिया(बेटा बहू मानवीय दायित्वों ,नैतिक कर्तव्य को भी बोझ ही मानते आये हैं आज तक?) बाकी रही सही हिम्मत टी.बी. की बीमारी ने खत्म कर दी, इलाज की कोशिश तो की पर बुढ़ापे में दवाई उतनी कारगर नही रह जाती क्योंकि दवा काम करतीं हैं शारीरिक स्तर पर,ओर बीमारी काम करतीं हैं मानसिक स्तर पर? हमारे आस पास बहुत से लोग बाबा,तांत्रिक ,झाड फूँक वालों के यहाँ जाते हैं किसी बाबा ने भभूत दी ओर बीमारी भाग गई, कुछ बाबा तो भभूत से भूत भी भगा देते? ओर इनके यहाँ डॉक्टर से ज्यादा मरीज जाते हैं ओर ऐसा भी नही की मरीज को आराम नही मिलता हो ,आराम भी मिलता हैं दरअसल इलाज भभूत नही करती असल मे तो कोई बीमारी थी ही नही भ्रम था की बीमारी हैं ओर बाबा की मार्केटिंग करने वाले लोग भीड़ में शामिल रहते है वो बाबा को चमत्कारी बताते हैं बस यही से पीड़ित पर मनोवैज्ञानिक असर होने लगता है पीड़ित को लगता हैं बाबा कुछ भी कर सकते हैं चमत्कारी हैं अब तो में ठीक हो ही जाऊँगा?? बस इतना सोचने से ही मरीज को आराम मिलने लगता है ओर बाबा की भभूत मानसिक रुप से संजीवनी का काम कर जाती है भ्रम की दवा भी भ्रम ही होती हैं बीमारी भ्रम की होगी तो ही भभूत ताबीज गंडे काम करेंगे? यदि असली बीमारी को लेकर जाओगे तो भभूत फेल हो जाएगा कोई टूटी हुई टांग लेकर पहुँच जाये कहे अब करो ठीक? भभूत फेल हो जाऐगी! राम की स्थिति मानसिक #बीमारी की हैं #बुढ़ापा मानसिक ही होता हैं जिसने पिकनिक का आनंद नही लिया हो ? जिसने जिंदगी को बोझ समझ के जिया हो? जिसने जीवन नृत्य ना किया हो? ऊनका जीवन तो बुढ़ापे मे ही गुजरा? शरीर केवल ऊपर से प्रमाणित कर सकताहै बुढ़ापे को, ओर वो भी केवल ऊनको जो बुढ़ापे में ही जिंदगी को जिए हो! जिसने जिंदगी को आनंद मे जिया हो ऊनका कैसा बुढ़ापा? राम घर परिवार में ही ऊलझा रहा आनंद का तो ख्याल ही नही किया कभी, 3 बेटियाँ 2 बेटे पढ़ाई, शादी, बीमारी,आर्थिक तंगी, इतनी ऊलझन थी जिंदगी मे कभी खुद का ख्याल ही नहीं किया? खुद को ही भुला दिया? ब्याज के चक्कर में मूल को भूल गए? राम इसी ख्याल मे खोया हुआ था कि आवाज आई बड़े बेटे की बाबा बाबा हम सब लोग पिकनिक पर जा रहे हैं हफ्ते बाद आएँगे इतना बोल कर वो चला गया । संता को जैसे करंट लगा पिकनिक शब्द सुन कर? सब याद आ गया पिकनिक आना श्याम ऊसका दोस्त, राम का अपना घर ?? राम बेचैन हो गया ऊसको घर जाना हैं अभी जाना हैं ( उम्र कैद की सजा पूरी कर के जब कैदी जेल से रिहा होता हैं तब जो मन स्थिति होती हैं ऐसी हालत थी राम की ऊडकर जाना चाहता था अपने घर) गिरते पढ़ते बाहर आकर देखा सब लोग जा चूके हैं पिकनिक। , हताशा, निराश,दुखी,बेचैन, वापस आगया अपनी झोपड़ी में , उसको बहुत हँसी आ रही थी और रोना भी आ रहा था खुद पर सोच रहा था कि वो कितना मुढ व्यक्ति हैं आपना #घर भूल गया और पिकनिक में घर बना बैठा??? मूर्खता की #पराकाष्ठा परम #मूर्खता कर बैठा??? रास्ते को ही #मंजिल समझ बैठा? अब तो घर का पता भी नहीं याद था राम को ??? ठीक राम जैसी स्थिति हैं हम सबकी?? क्योंकि संसार किसी का घर नहीं है मात्र #पर्यटनस्थल हैं संसार? हम सभी को जाना हैं यहाँ से कभी ना कभी जाना ही है अपने घर वहाँ जहाँ से हम आये हैं हम रोज देखते हैं कुछ नये यात्री आते है कुछ जाते है प्रतिदिन #मृत्यु घटित हो रही है अब तो #श्मशान में भी लाईन लगने लगी है ( आम आदमी तो लाईन में ही खड़ा रहता है मरने के बाद भी??) आप टेलीविजन कभी भी देखें? 5मरे ओर 15 घायल, रोज की न्यूज ही हो गयी है ? कितना आसान हो गया है मृत्यु को देखना? तब भी लोगों के अंदर ख्याल नहीं आता की हम सब की भी मृत्यु होगी ही? कोई भी यहाँ हमेशा के लिये नहीं हैं बात तो सामान्य हैं किन्तु हम इतने भी होश में नहीं जीते की सामान्य बातों को भी समझ सके? हमारी सारे प्रयास खुद को #भूलने के होते हैं हम जागृत नहीं रहना चाहते हमारी आदतों में शामिल हो गया हैं बेहोश रहना?? कोई भी काम करते है कुछ ना कुछ चलता रहता है मन मे ,काम दुकान मे कर रहे होते हैं और मन क्रिकेट मे होता? तोल रहे होते है तेल और मन खेल मे रहता हैं? ये तरीका गलत हैं? जीवन जिने का सही तरीका है #जागृत होकर जीना, #वर्तमान में जीना, अपनी #सम्पूर्णता मे जीना, #होश में जीना, अवेयरनेस में जीना, आप #अवेयरनेस मे नही हो तो आप जान ही नहीं पाओगे कभी की #जिंदगी#पिकनिक हैं ओर #संसार पिकनिक स्पाट.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें